
बंगाल की खाड़ी के तट पर स्थित दक्षिण भारत का यह मंदिर प्राचीन स्थापत्य कला का बेजोड़ प्रतिक है.
भारतवर्ष में सनातन धर्म व सनातन सभ्यता संस्कृति की झलक हमें जगह जगह देखने को मिलती है। भारतवर्ष के किसी भी भाग में हम चले जाएं वहां हमें ईश्वर या देवी की प्राचीन मूर्ति अथवा मंदिर देखने को मिल ही जाते है और भारतवर्ष ही क्यों दुनिया के किसी भी हिस्से में हम चले जाएँ वहां हमें सनातन धर्म के चिन्ह हमें मिलते रहे है। वे पहचान धार्मिक होने के साथ ही सांस्कृतिक चिन्हों की भी हमें स्मृति दिलाती है।

विधर्मी और आक्रांता मुस्लिम ने सनातन धर्म को मिटाने की भरसक कोशिश की थी
हालांकि सनातन धर्म के कई स्थलों को मुस्लिमों ने मिटाने की भरसक कोशिश की है। उन्हें तोडा ताकि सनातन धर्म मिट जाएं पर बावजूद इसके अनेक स्मृतियां उन विधर्मियों की क्रूरता को झेलते हुए आज भी उपस्थित है। भारतवर्ष की ऐसी ही एक धार्मिक स्मृति हमें महाबलीपुरम में.देखने को मिलती है।
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महाबलीपुरम दक्षिण भारत का एक शहर है
महाबलीपुरम भारत के दक्षिण क्षेत्र का एक शहर है। यह बंगाल की खाड़ी (समुद्र) के तट पर स्थित है। तो जल्द ही हमारी बस भी मंदिर पहुंच गई।
महाबलीपुरम के इस मंदिर को रथ मंदिर, पांच रथ मंदिर, पंचरत्न या पांडव रथ नामों से जाना जाता है
अब अगर इस मंदिर के नाम की बात करें तो इस मंदिर को कई नामों से जाना जाता है। इस मंदिर को रथ मंदिर, पांच रथ मंदिर, पंचरत्न या पांडव रथ नामो से जाना जाता है। यह पंच रथ मंदिर स्थापत्यकला का प्रतिक है।

रथ मंदिर का निर्माण कब और किसने किया
रथ मंदिर को सातवीं सदी के शासक पल्लव वंश राजा नर्सरी बर्मन प्रथम ने बनाया था। जबकि महाबलीपुरम नगर को बसाने का श्रेय भी सातवीं ईस्वी के दौरान में पल्लव राजा नर्सरी बर्मन प्रथम को ही जाता है। महाबलीपुरम के इन सभी मंदिरो को वर्ष 1984 में यूनेस्को ने विश्व धरोहर स्थल में शामिल किया है।

रथ मंदिर की बनावट
सबसे आगे में द्रौपदी रथ मंदिर है। उसके बाद अर्जुन रथ मंदिर है, फिर तीसरा भीमरथ मंदिर है चौथा युधिष्ठिर रथ मंदिर है और अंतिम में नकुल-सहदेव रथ मंदिर है। इसके अलावे यहां पर हाथी,शेर और बैल की भी मूर्ति है। इस तरह यहां तीन आकृतियां पशुओं की है तो शेष पांच आकृतियां पांडवों के रथ मंदिर की है।
अब यदि प्रवेश द्वार से अंदर जाया जाएं तो सबसे पहला रथ मंदिर जो आता है, वह द्रौपदी रथ मंदिर है। उसके बाद फिर वही क्रम द्रौपदी रथ से आगे बढ़ने पर दूसरा रथ अर्जुन रथ और तीसरा भीम चौथा युधिष्ठिर तो पांचवा व अंतिम नकुल-सहदेव रथ मंदिर।

रथ मंदिर किस पत्थर का बना हुआ है
पांचो रथ ग्रेनाइट शिलाखंड है। यानि इन्हे केवल तरासा गया है। यानी चट्टानों में केवल काट छांट ही की गई है। कहने का अर्थ यह है कि इन्हे कही और से लाकर इन्हे रथ का रूप नहीं दिया गया है बल्कि ये चट्टान जो पहले से ही यहाँ उपस्थित थे, उन्हें ही काट छांट करके रथ का रूप दे दिया गया है। अब यही कारण है कि ये बहुत ही मजबूत है। यहां ये बातें ध्यान देने वाली है कि इन पत्थरो को किसी प्लास्टर करके नहीं जोड़ा गया है और न ही इन्हे कही से लाकर बनाया गया है बल्कि यहां के चट्टानों को ही काट-छांट कर उन्हें रथ मंदिर व जानवरो की आकृति दे दी गई है।
महाबलीपुरम में शोर मंदिर भी है
महाबलीपुरम में केवल रथ मंदिर ही नहीं है, बल्कि यहां कई अन्य ऐतिहासिक मंदिर भी है। जिनमे शोर मंदिर प्रमुख है जो भगवान विष्णु को समर्पित है।

रथ मंदिर कैसे पहुँचे
वैसे हमारी यात्रा नई दिल्ली से आरम्भ होती है। महाबलीपुरम पहुंचने के लिए पहले आपको चेन्नई जाना होगा क्योकि महाबलीपुरम में कोई रेलवे स्टेशन नहीं है। इसलिए यहां पहुंचने के लिए पहले आपको चेन्नई जाना होगा।
चेन्नई से सड़क मार्ग से महाबलीपुरम जाने की सड़के चौड़ी और साफ है इसलिए यहां की यात्रा मन को सुकून देने वाली है। अगर दुरी की बात करें तो यह चेन्नई से लगभग 55 किलोमीटर दूर है और चेन्नई से दक्षिण दिशा की ओर स्थित है।
चेन्नई रेलवे स्टेशन का आधिकारिक नाम अब 'पुराची थलाइवर डॉ एमजी रामचंद्रन सेंट्रल रेलवे स्टेशन' है
चेन्नई रेलवे स्टेशन का आधिकारिक नाम अब चेन्नई नहीं रहा है बल्कि अब चेन्नई रेलवे स्टेशन 'पुराची थलाइवर डॉ एमजी रामचंद्रन सेंट्रल रेलवे स्टेशन' के नाम से जाना जाता है। इसका नाम 2019 में बदला गया था। स्टेशन के बाहर आपको यही नाम लिखा हुआ दिखेगा। चेन्नई सेन्ट्रल नाम से पहले यह मद्रास सेंट्रल के नाम से जाना जाता था।
इस स्टेशन का नाम बड़ा होने के कारण इसे लोग 'डॉ एमजी रामचंद्रन सेंट्रल रेलवे स्टेशन' से भी पुकारते है। चेन्नई तमिलनाडु की राजधानी तो है ही साथ ही यहां पर स्थित इस रेलवे स्टेशन की गिनती दक्षिण भारत के सबसे व्यस्त रेलवे स्टेशनों में भी होती है। इसके अलावे यह देश के सबसे महत्वपूर्ण रेलवे स्टेशन में से भी एक है।

महाबलीपुरम का रथ मंदिर बंगाल की खाड़ी (समुद्र) के किनारे स्थित है
महाबलीपुरम का यह पंचरत्न मंदिर समुद्र के बिलकुल पास स्थित है। यह समुद्र बंगाल की खाड़ी के नाम से जाना जाता है। तो यात्रा के अंत में यहां आना न भूले, यहां आने पर बहुत अच्छा महसूस होता है।
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लेखन :
अति उत्तम जानकारी 👌👌🙏🏻
जवाब देंहटाएंBahut badhiya achi jankari mili.... धन्यवाद 🙏🏻🙏🏻
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